Thursday 15 September 2016

भारत में इस्लाम एक विदेशी संस्कृति

                        ।।इस्लाम ।।
                  एक विदेशी मजहब

            भारत एक एषा देश है जहाँ हिन्दू मुस्लिम सिख ईशाई यहूदी पारसी जैन बोध बहुत से धर्म निवास करते है ।कुछ धर्मो के अनुय्याई कम है और कुछ के अधिक लेकिन कम व ज्यादा का भेद किये बिना अनेक धर्म  हिन्दुस्तान की पावन धरा पर अपना अस्तित्व दर्ज करवा रहे है ।
        हर मजहब को मानने वाले अपने मजहब को ही उचित ठहराते है और उसी के अनुशार अपना जीवन जीते है । लेकिन इस्लाम एक ऐशा मजहब है जिसके अनुय्याइ केवल खुद खुद के मजहब को ही सर्वश्रेठ मानते और किसी अन्य मजहब के अस्तित्व को स्वीकार नही करते और केवल  अपने  मजहब की पताका सम्पूर्ण भारत पर फहराने की इच्छा अपने दिल और दिमाग में पाले रहते है। इन तथा कथित बुद्धिजीवियों और मजहब  के प्रचारको के चुंगल में भारत की भोली जनता फंस जाती है और बिना कोई सच्छाइ के पक्ष को देखे वो उस मजहब पर विस्वास करने लग जाती है ।
          पर इन इस्लामिक मजहबी लोगो के चुंगल में फसने वालो और न फसने वालो ने कभी ये नही सोचा की ये मजहब आया कहाँ से और क्यों भारत को अपने रंग में रंगना चाहते है ।
           आइये हम आपको अवगत करवाते है की आखिर इस्लाम कहाँ से आया  और क्यों भारत वर्ष पर ये अपनी गन्दी नजर गड़ाये बेठे है ।

इस्लाम का उदय
इस्लाम का प्रचार
इस्लाम का भारत आगमन
कुरआन का आदेश
भारतीय मुस्लिम देशी या विदेशी
क्यों चाहते है भारत पर कब्जा

इस्लाम का उदय
       इस्लाम आज भारत भूमि पर अपनी जड़े गहरी करने में लगा है और भारत के कुछ इलाको में जहां इसकी जेड गहराई में जा चुकी वहां उनको मजबूत करने में लगा है और जहाँ मजबूत जड़े है वहां ये अन्य मजहबो की जड़ो को उखाड़ने में लगा है ।पर भारत में जड़े जमाने वाले इस्लाम का बिज भारत में नही बोया गया था ये तो एक  ऐसा मजहब है जिसका बिज मोहमद नाम के व्यक्ति ने 1437 साल पहले सऊदी अरब में एक स्थान विशेस पर बोया था जिसको हम आज मक्का मदीना के नाम से जानते है । माँ व् बाप के प्यार के बिना अनाथ का जीवन काटने वाले मोहमद को अपने चाचा का ही सहारा था।मोहमद अपने जीवन व्यापन के लिए गड़रिये का काम करता था और एकांत प्रेमी था।गड़रिये का काम करते करते अनाथ मोहमद ने 25 बसन्त देख लिए थे तभी उसके एक दोस्त ने मोहमद को गड़रिये का काम छुड़वा कर एक बेवा व्यवसायी ख़दीजा के यहाँ नोकरी पर लगवा दिया।मोहमद का एकाकीपण और आवश्यकता से कम बोलना ख़दीजा के दिमाग में घर कर गया जो दिल तक अपना विस्तार कर चुका। ख़दीजा अपने जीवन में अकेली थी और मोहमद अपने जवानी के चरम शिखर पर था। दोनों में नजदीकियां बढ़ी और आखिर  मोहमद ने एक बेवा ख़दीजा  से 25 साल की उमर में शादी की जो मोहमद की उम्र से लगभग 15-20 साल बड़ी थी ।धिरे धीरे ख़दीजा के व्यापर को ख़दीजा की जगह मोहमद देखने लग गया ।मोहमद को ख़दीजा का प्यार और ख़दीजा की डोलत एक साथ मिल गई और जीवन आनन्द के साथ गुजरे लगा ।कुछ हिं दिनों बाद मोहमद को अलग ही अनुभूति होने लगी और वो कहने लगा की मैं किसी ईश्वरीय शक्ति के नयंत्रण में हु। मैं एक अलौकिक शक्ति के सम्पर्क में हूँ।और उस चालाक मोहमड की बात पर खुदीजा ने विस्वास कर लिया और रसूल मुहमद की पहली अनुयायी खुदीजा ही बनी थी।
शहर में खुदीजा का डंका था क्यों की वो एक बड़ी व्यापारी थी जिसका फायदा मोहमद ने बड़ी चतुराई से उठाया।खुदीजा के नाम और धन दोनों का मुहमद ने बहुत फायदा उठाया ।धीरे धीरे मोहमद के अनुयायी बढ़ने लगे और मोहमद आक्रमक होता गया।अब खुदीजा के नाम और धन से ज्यादा मोहमद जिहाद के नाम पर अपने अनुयायी बनाने लगा।युवाओ को और भोली जनता को घर वालो के प्रति ही भड़काने लगा।

लेखन का कार्य जारी है....आगे का भाग कुछ ही दिनों में अपलोड करेंगे